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दहन को ज़ख़्म ज़बाँ को लहू लहू करना

प्रेम कुमार नज़र

दहन को ज़ख़्म ज़बाँ को लहू लहू करना

प्रेम कुमार नज़र

MORE BYप्रेम कुमार नज़र

    दहन को ज़ख़्म ज़बाँ को लहू लहू करना

    अज़ीज़ो सहल नहीं उस की गुफ़्तुगू करना

    खुले दरीचो को तकना तो हाव-हू करना

    यही तमाशा सर-ए-शाम कू-ब-कू करना

    जो काम मुझ से नहीं हो सका वो तू करना

    जहाँ में अपना सफ़र मिस्ल-रंग-ओ-बू करना

    जहाँ में आम हैं नुक्ता-शनासियाँ उस की

    तुम एक लफ़्ज़ में तशरीह-ए-आरज़ू करना

    दिल-ए-तबाह की ईज़ा-परस्तियाँ मालूम

    जो दस्तरस में हो उस की जुस्तुजू करना

    मैं उस की ज़ात से इंकार करने वाला कौन

    हो यक़ीं तो मुझे उस के रू-ब-रू करना

    जो हर्फ़ लिखना उसे लौह-ए-आब पर लिखना

    जो नक़्श करना सर-ए-सतह-ए-आबजू करना

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