aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
सालिक, मिर्ज़ा कुर्बान अ’ली बेग (1824-1880) हैदराबाद में पैदाइश मगर दिल्ली में पले-बढ़े। पहले ‘मोमिन’ और फिर मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ के शागिर्द रहे। उनके कलाम में अपने उस्ताद की झलकियाँ, बुलंद ख़याली और मुश्किल तर्कीबों (शब्द-समूह) की शक्ल में जगह-जगह नज़र आती है। उम्र का आख़िरी हिस्सा हैदराबाद में गुज़रा और वहीं की मिट्टी में मिल गए।
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