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Khwaja Ahmad Abbas's Photo'

ख़्वाजा अहमद अब्बास

1914 - 1987 | मुंबई, भारत

पद्म श्री, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, इप्टा के संस्थापक सदस्य, कथाकार, पत्रकार, मेरा नाम जोकर और श्री 420 जैसी फिल्मों के लिए मशहूर

पद्म श्री, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, इप्टा के संस्थापक सदस्य, कथाकार, पत्रकार, मेरा नाम जोकर और श्री 420 जैसी फिल्मों के लिए मशहूर

ख़्वाजा अहमद अब्बास की कहानियाँ

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दिया जले सारी रात

यह मुहब्बत को एक नए रूप में पेश करती हुई कहानी है। त्रावणकोर में कश्ती में बैठकर समुंद्र में घूमते हुए कब शाम ढल गई उसे पता ही नहीं चला। शाम धीरे-धीरे रात में तब्दील होती गई और कश्ती आगे बढ़ती गई। किनारे से बहुत दूर निकल आने पर उसने पास की एक दूसरी कश्ती को देखा, जिसमें एक लालटेन जल रही थी। किश्ती जब पास आई तो उसमें एक औरत बैठी हुई थी और वह एक पेड़ पर दिया जलाकर वापस चली गई। इस औरत के बारे में जब उसने अपने नाविक से पूछा तो उसने बताया कि वह औरत पिछले तीन साल से अपने उस प्रेमी का इंतिज़ार कर रही है, जो मर चुका है। उसको रास्ता दिखाने के लिए वह हर रात आकर उस पेड़ पर दिया जलाती है।

अबाबील

इंसानी स्वभाव की परतें खोलती एक ऐसे किसान की कहानी है जिसके ग़ुस्से की वजह से। गाँव के लोग हमेशा उससे फ़ासला बना कर रखते हैं। उसकी बेवजह और शदीद ग़ुस्से की वजह से एक दिन उसकी बीवी अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर चली जाती है। किसान जब अपने खेत से वापस आता है तो उसे पता चलता है कि अब वह घर में अकेला है। एक दिन उसे अपने घर के छप्पर में अबाबील का घोंसला दिखाई देता है। घोंसले में अबाबील के छोटे-छोटे बच्चे हैं। अबाबील के बच्चों से एक ऐसा गहरा रिश्ता हो जाता है कि उन्हें बारिश से बचाने के लिए वह बारिश में भीगता हुआ छप्पर को ठीक करता है। बारिश में भीग जाने की वजह से वह बीमार हो जाता है और उसकी मौत हो जाती है।

शुक्र अल्लाह का

इस कहानी में प्रतिक्रियावाद को तंज़ का निशाना बनाया गया है। ममदू जो एक दुर्घटना में अपनी एक टांग गंवा बैठा है, हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करता रहता है। जवानी के दिनों में जिस तहसीलदार के यहाँ वो मुलाज़िम था उसकी बेटी बानो ने अपनी सौतेली माँ के अत्याचार से तंग आकर ममदू से भाग चलने की विनती की थी लेकिन ममदू तहसीलदार के डर से बीमार हो कर घर आ गया था। लम्बे समय के बाद बानो उसको एक कोठे पर मिलती है, वो बानो को वहाँ से निकाल लाता है और अपनी पत्नी के रूप में साथ रखता है। उम्र के आख़िरी दिनों में बानो की दिमाग़ी हालत ख़राब हो जाती है और वो ममदू को पहचान भी नहीं पाती है। ममदू ख़ुदा का शुक्र अदा करता है कि बानो साथ में है और वो कम से कम उसे देख तो सकता है।

दिल ही तो है

"इंसान के जुनून और बदले की भावना को इस कहानी में चित्रित किया गया है। क़त्ल के मुजरिम फ़ौजी को अदालत जब फांसी की सज़ा सुनाती है तो वो आख़िरी इच्छा के रूप में अपने घर जाने की इच्छा प्रकट करता है और वहाँ से अपनी फ़ौजी ट्रेनिंग की बदौलत फ़रार होने में कामयाब हो जाता है। शिकारी कुत्तों की मदद से जब वो गिरफ़्तार होता है तो उसके दिल में गोली मार दी जाती है। जज के बहुत आग्रह के बाद डाक्टर ऑप्रेशन के ज़रिये उसके नया दिल लगा देता है। पत्रकार मुजरिम से उसके अगले प्रोग्राम के बारे में पूछते हैं तो वो कहता है कि मैं सिर्फ ज़िंदा रहना चाहता हूँ। तीन महीने के बाद हॉस्पिटल से उसकी छुट्टी हो जाती है और उसके बाद अदालत के आदेश के अनुसार फांसी।"

भोली

"शिक्षा के द्वारा महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा होने की कहानी। नंबरदार की सबसे छोटी बेटी भोली जन्म से ही हकलाती है। गाँव में जब स्कूल खुलता है तो तहसीलदार के हुक्म पर वो भोली को स्कूल में दाख़िल करा देता है, हालाँकि उसे उसकी शिक्षा की तनिक भी परवाह नहीं होती। स्कूल की उस्तानी के स्नेह और तवज्जो से भोली की झिझक दूर हो जाती है। उस्तानी उसे दिलासा देती है कि एक दिन तुम बोलना सीख जाओगी। इस तरह सात साल गुज़र जाते हैं। भोली की तरफ़ से अब भी सब ग़ाफ़िल हैं और उसे हुकली, कम-अक़्ल और गाय ही समझते हैं, जिसके चेचक के दाग़ हैं और जिससे कोई शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा। नंबरदार एक बूढ़े और लंगड़े आदमी से भोली की शादी तय कर देता है लेकिन वो हार डालने से पहले जब भोली के चेहरे पर चेचक के दाग़ देखता है तो पाँच हज़ार रुपये की मांग करता है। नंबरदार इज़्ज़त बचाने की ख़ातिर पाँच हज़ार रुपये ला कर उसके क़दमों में डाल देता है लेकिन भोली शादी करने से इंकार कर देती है और बरात वापस चली जाती है। भोली की बोलने की इस शक्ति को देखकर गाँव वाले हैरान और उस्तानी आनंदित होती है।"

सलमा और समुन्दर

माँ-बाप की ओर से बच्चों पर अनावश्यक पाबंदियों के नतीजे में पैदा होने वाली मनोवैज्ञानिक उलझनों को इस कहानी में प्रस्तुत किया गया है। प्रसिद्ध वकील सर अज़ीम-उल्लाह अपनी बेटी के महावत की लड़की झुनिया से मिलने पर न सिर्फ सख़्त पाबंदी लगाते हैं बल्कि उसे समुंद्री जहाज़ से लंदन पढ़ने के लिए भेज देते हैं। सफ़र के दौरान मासूम ज़ेहन में उठने वाले सवालों, विचारों, अनुभवों के नतीजे में उसके अचेतन में समुंद्र का ऐसा ख़ौफ़ बैठ जाता है कि कैम्ब्रिज से दर्शनशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद भी वह डर नहीं निकलता। जब डाक्टर अनवर से उसकी लव मैरिज हो जाती है तो अनवर कश्ती में ही बिठा कर उसका मनोवैज्ञानिक इलाज करता है, और समुंद्र के किनारे प्रसव पीड़ा में मुब्तला जो मछेरन उससे मिलती है उसका नाम भी झुनिया होता है।

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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