नख़्ल-ए-मोहब्बत
यह एक ऐसे निःसंतान दंपत्ति की कहानी है, जो अकेले ही एक-दूसरे का सुख-दुःख बाँटते हुए ज़िंदगी गुज़ारते हैं। उनके दिल में औलाद के न होने का दुःख हमेशा पलता रहता है। एक रोज़़ एकाएक उनके आँगन में एक बेरी का पेड़ उग आता है और वे दोनों उसको अपने बच्चे की तरह पालते हैं। पेड़ पर जब फल आता है तो वे ख़ुद खाने के बजाय गाँव में बाँटते रहते हैं। एक साल जब वे एक ठाकुर के यहाँ बेर देना भूल जाते हैं तो ग़ुस्से में आकर ठाकुर उस बेरी के पेड़ को काट डालता है।