हतक
"प्यार के दो बोल के लिए तरसती हुई एक ऐसी बे-बस और बे-सहारा वेश्या की कहानी है जो अपमान की पराकाष्ठा पर पहुंच कर आत्मज्ञान से दो-चार होती है। सौगंधी एक वेश्या है, रात के दो बजे जब एक सेठ ग्राहक उसे ठुकरा कर चला जाता है तो उसके अंदर की औरत जागती है और फिर एक विचित्र प्रकार की मनोदशा में वो प्यार का ढोंग रचाने वाले माधव लाल को भी धुतकार कर भगा देती है और अपने ख़ारिश-ज़दा कुत्ते को पहलू में लिटा कर सो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
आनंदी
‘समाज में जिस चीज़ की माँग होती है वही बिकती है।’ बल्दिया के पाकबाज़ लोग शहर को बुराइयों और बदनामियों से बचाने के लिए वहाँ के ज़नाना बाज़ार को शहर से हटाने की मुहिम चलाते हैं। वह इस मुहिम में कामयाब भी होते हैं और उस बाज़ार को शहर से छ: मील दूर एक खंडहर में आबाद करने का फैसला करते है। अब बाज़ारी औरतों के वहाँ घर बनवाने और आबाद होने तक उस खंडहर में ऐसी चहल-पहल रहती है कि वह अच्छा-ख़ासा गाँव बन जाता है। कुछ साल बाद वह गाँव क़स्बा और क़स्बे से शहर में तब्दील हो जाता है। यही शहर आगे जाकर आनंदी के नाम से जाना जाता है।
ग़ुलाम अब्बास
बारिश
"यह एक नौजवान के ना-मुकम्मल इश्क़ की दास्तान है। तनवीर अपनी कोठी से बारिश में नहाती हुई दो लड़कियों को देखता है। उनमें से एक लड़की पर मुग्ध हो जाता है। एक दिन वो लड़की उससे कार में लिफ़्ट माँगती है और तनवीर को ऐसा महसूस होता है कि उसे अपनी मंज़िल मिल गई है लेकिन बहुत जल्द उसे मालूम हो जाता है कि वो वेश्या है और तनवीर उदास हो जाता है।"
सआदत हसन मंटो
जानकी
जानकी एक ज़िंदा और जीवंत पात्र है जो पूना से बम्बई फ़िल्म में काम करने आती है। उसके अंदर ममता और ख़ुलूस का ठाठें मारता समुंदर है। अज़ीज़, सईद और नरायन, जिस व्यक्ति के भी नज़दीक होती है उसके साथ जिस्मानी ख़ुलूस बरतने में कोई तकल्लुफ़ महसूस नहीं करती। उसकी नफ़्सियाती पेचीदगियाँ कुछ इस तरह की हैं कि जिस वक़्त वह एक शख़्स से जिस्मानी रिश्तों में जुड़ती है, ठीक उसी वक़्त उसे दूसरे की बीमारी का भी ख़याल सताता रहता है। जिन्सी मैलानात का तज्ज़िया करती हुई यह एक उम्दा कहानी है।
सआदत हसन मंटो
पेशावर से लाहौर तक
जावेद पेशावर से ही ट्रेन के ज़नाना डिब्बे में एक औरत को देखता चला आ रहा था और उसके हुस्न पर फ़िदा हो रहा था। रावलपिंडी स्टेशन के बाद उसने जान-पहचान बढ़ाई और फिर लाहौर पहुँचने तक उसने सैकड़ों तरह के मंसूबे बना डाले। लाहौर पहुँच कर जब उसे मालूम हुआ कि वह एक वेश्या है तो वह उलटे पाँव रावलपिंडी वापस हो गया।
सआदत हसन मंटो
अंजाम बख़ैर
विभाजन के दौरान हुए दंगों में दिल्ली में फँसी एक नौजवान वेश्या की कहानी है। दंगों में क़त्ल होने से बचने के लिए वह पाकिस्तान जाना चाहती है, लेकिन उसकी बूढ़ी माँ दिल्ली नहीं छोड़ना चाहती। आख़िर में वह अपने एक पुराने उस्ताद को लेकर चुपचाप पाकिस्तान चली जाती है। वहाँ पहुँचकर वह शराफ़त की ज़िंदगी गुज़ारना चाहती है। मगर जिस औरत पर भरोसा करके वह अपना नया घर आबाद करना चाहती थी, वही उसका सौदा किसी और से कर देती है। वेश्या को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपने घुँघरू उठाकर वापस अपने उस्ताद के पास चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
सौ कैंडल पॉवर का बल्ब
"इस कहानी में इंसान की स्वाभाविक और भावनात्मक पहलूओं को गिरफ़्त में लिया गया है जिनके तहत वो कर्म करते हैं। कहानी की केन्द्रीय पात्र एक वेश्या है जिसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वो किस के साथ रात गुज़ारने जा रही है और उसे कितना मुआवज़ा मिलेगा बल्कि वो दलाल के इशारे पर कर्म करने और किसी तरह काम ख़त्म करने के बाद अपनी नींद पूरी करना चाहती है। आख़िर-कार तंग आकर अंजाम की परवाह किए बिना वो दलाल का ख़ून कर देती है और गहरी नींद सो जाती है।"
सआदत हसन मंटो
शारदा
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो तवायफ़़ को तवायफ़़ की तरह ही रखना चाहता है। जब कोई तवायफ़ उसकी बीवी बनने की कोशिश करती तो वह उसे छोड़ देता। पहले तो वह शारदा की छोटी बहन से मिला था, पर जब उसकी शारदा से मुलाक़ात हुई तो वह उसे भूल गया। शारदा एक बच्चे की माँ है और देखने में ठीक-ठाक लगती है। बिस्तर में उसे शारदा में ऐसी लज्ज़त महसूस होती है कि वह उसे कभी भूल नहीं पाता। शारदा अपने घर लौट जाती है, तो वह उसे दोबारा बुला लेता है। इस बार घर आकर जब शारदा बीवी की तरह उसकी देखभाल करने लगती है तो वो उससे उक्ता जाता है और उसे वापस भेज देता है।
सआदत हसन मंटो
क़ादिरा क़साई
अपने ज़माने की एक ख़ूबसूरत और मशहूर वेश्या की कहानी। उसके कोठे पर बहुत से लोग आया करते थे। सभी उससे मोहब्बत का इज़हार किया करते थे। उनमें एक ग़रीब शख़्स भी उससे मोहब्बत का दावा करता था। वेश्या ने उसकी मोहब्बत को ठुकरा दिया। वेश्या के यहाँ एक बेटी हुई। वह भी बहुत ख़ूबसूरत थी। जिन दिनों उसकी बेटी की नथ उतरने वाली थी उन्हीं दिनों देश का विभाजन हो गया। इसमें वेश्या मारी गई और उसकी बेटी पाकिस्तान चली गई। यहाँ भी उसने अपना कोठा जमाया। जल्द ही उसके कई चाहने वाले निकल आए। वह जिस शख़्स को अपना दिल दे बैठी थी वह एक क़ादिरा कसाई था, जिसे उसकी मोहब्बत की कोई ज़रूरत नहीं थी।
सआदत हसन मंटो
मम्मद भाई
यह आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई कहानी है। मम्मद भाई बंबई में अपने इलाके के ग़रीबों के खै़र-ख्वाह हैं। उन्हें पूरे इलाके़ की जानकारी होती है और जहाँ कोई ज़रूरत-मंद होता है उसकी मदद को पहुँच जाते हैं। किसी औरत के उकसाने पर मम्मद एक शख़्स का खू़न कर देता है। हालांकि उसका कोई चश्मदीद गवाह नहीं है तो भी उसकी मूँछों को देखते हुए लगता है कि अदालत उसे कोई सज़ा सुना सकती है। मम्मद भाई को सलाह दी जाती है कि वह अपनी मूँछें कटवा दें। मम्मद भाई मूँछें कटवा देता है, लेकिन फिर भी अदालत उसे सज़ा सुना देती है।
सआदत हसन मंटो
हारता चला गया
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे जीतने से ज़्यादा हारने में मज़ा आता है। बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद फ़िल्मी दुनिया में उसने बे-हिसाब दौलत कमाई थी। यहाँ उसने इतनी दौलत कमाई कि वह जितना ख़र्च करता उससे ज़्यादा कमा लेता। एक रोज़ वह जुआ खेलने जा रहा था कि उसे इमारत के नीचे ग्राहकों को इंतज़ार करती एक वेश्या मिली। उसने उसे दस रूपये रोज़ देने का वादा किया, ताकि वह अपना धंधा बंद कर सके। कुछ दिनों बाद उसने देखा कि वह वेश्या फिर खिड़की पर बैठी ग्राहक का इंतेज़ार कर रही। पूछने पर उसने ऐसा जवाब दिया कि वे व्यक्ति ला-जवाब हो कर ख़ामोश हो गया।
सआदत हसन मंटो
दस रूपये
"यह एक ऐसी कमसिन लड़की की कहानी है जो अपनी उमड़ती हुई जवानी से अंजान थी। उसकी माँ उससे पेशा कराती थी और वो समझती थी कि हर लड़की को यही करना होता है। उसे दुनिया देखने और खुली फ़िज़ाओं में उड़ने का बेहद शौक़ था। एक दिन जब वो तीन नौजवानों के साथ मोटर में जाती है और अपनी मर्ज़ी के अनुसार ख़ूब तफ़रीह कर लेती है तो उसका दिल ख़ुशी से इतना उन्मत्त होता है कि वो उनके दिए हुए दस रुपये लौटा देती है और कहती है कि ये रुपये मैं किस लिए लूं।"
सआदत हसन मंटो
ताई इसरी
ग्रैंड मेडिकल कॉलेज कलकत्ता से लौटने पर पहली बार उसकी मुलाक़ात ताई इसरी से हुई थी। ताई इसरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी अकेली ही गुज़ार दी। वह शादी-शुदा हो कर भी एक तरह से कुँवारी थी। उनका शौहर जालंधर में रहता था और ताई इसरी लाहौर में। मगर अकेली होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। और ज़िंदगी को पूरे भरपूर अंदाज़ में जिया।
कृष्ण चंदर
सेराज
यह एक ऐसी नौजवान वेश्या की कहानी है, जो किसी भी ग्राहक को ख़ुद को हाथ नहीं लगाने देती। हालाँकि जब उसका दलाल उसका सौदा किसी से करता है, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ चली जाती है, लेकिन जैसे ही ग्राहक उसे कहीं हाथ लगाता है कि अचानक वह उससे झगड़ने लगती है। दलाल उसकी इस हरकत से बहुत परेशान रहता है, पर वह उसे ख़ुद से अलग भी नहीं कर पाता है, क्योंकि वह उससे मोहब्बत करने लगा है। एक दिन वह दलाल को लेकर लाहौर चली जाती है। वहाँ वह उस नौजवान से मिलती है, जो उसे घर से भगाकर एक सराय में अकेला छोड़ गया था।
सआदत हसन मंटो
मोमबत्ती के आँसू
यह एक ग़ुर्बत की ज़िंदगी गुज़ारती वेश्या की कहानी है। उसके घर में अंधेरा है। ताक़ में रखी मोमबत्ती मोम को पिघलाती हुई जल रही है। उसकी छोटी बच्ची मोतियों का हार माँगती है तो वह फ़र्श पर जमे मोम को धागे में पिरो कर माला बनाकर उसके गले में पहना देती है। रात में उसका ग्राहक आता है। उससे अलग होने पर वह थक जाती है, तभी उसे अपनी बच्ची का ध्यान आता है और वह उसके छोटे पलंग के पास जाकर उसे अपनी बाँहों में भर लेती है।
सआदत हसन मंटो
डरपोक
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो औरत की शदीद ख़्वाहिश होने के चलते रंडीख़ाने पर जाता है। उसने अभी तक की अपनी ज़िंदगी में किसी औरत को छुआ तक नहीं था। न ही उसने अभी तक किसी से इज़हार-ए-मोहब्बत किया था। ऐसा नहीं था कि उसे कभी कोई मौक़ा न मिला हो। मगर उसे जब भी कोई मौक़ा मिला वह किसी अनजाने ख़ौफ़़ के चलते उस पर अमल न कर सका। मगर पिछले कुछ दिनों से उसे औरत की बेहद ख़्वाहिश हो रही थी। इसलिए वह उस जगह तक चला आया था। रंडीख़ाना उससे एक गली दूर था, पर पता नहीं किस डर के चलते उस गली को पार नहीं कर पा रहा था। अंधेरे में तन्हा खड़ा हुआ वह आस-पास के माहौल को देखता है और अपने डर पर क़ाबू पाने की कोशिश करता है। मगर इस से पहले कि वह डर को अपने क़ाबू में करे, डर उसी पर हावी हो गया और वह वहाँ से ऐसे ही ख़ाली हाथ लौट गया।
सआदत हसन मंटो
हामिद का बच्चा
हामिद नाम के एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो मौज-मस्ती के लिए एक वेश्या के पास जाता रहता है। पर जल्दी ही उसे पता चलता है कि वह वेश्या उससे गर्भवती हो गई है। इस ख़बर को सुनकर हामिद डर जाता है। वह वेश्या को उसके गाँव छोड़ आता है। उसके बाद वह योजना बनाता है कि जैसे ही बच्चा पैदा होगा वह उसे दफ़न कर देगा। मगर बच्चे की पैदाइश के बाद जब वह उसे दफ़न करने गया तो उसने एक नज़र बच्चे को देखा। बच्चे की शक्ल हू-ब-हू उस वेश्या के दलाल से मिलती थी।
सआदत हसन मंटो
शान्ति
इस कहानी का विषय एक वेश्या है। कॉलेज के दिनों में वह एक नौजवान से मोहब्बत करती थी। जिसके साथ वह घर से भाग आई थी। मगर उस नौजवान ने उसे धोखा दिया और वह धंधा करने लगी थी। बंबई में एक रोज़ उसके पास एक ऐसा ग्राहक आता है, जिसे उसके शरीर से ज़्यादा उसकी कहानी में दिलचस्पी होती है। फिर जैसे-जैसे शांति की कहानी आगे बढ़ती है वह व्यक्ति उसमें डूबता जाता है और आख़िर में शांति से शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
घर में बाज़ार में
कहानी समाज और घर में औरत के हालात को पेश करती है। शादी के बाद औरत शौहर से ख़र्चे के लिए पैसे मांगते हुए शर्माती है। मायके में तो ज़रूरत के पैसे बाप के कोट से ले लिया करती थी मगर ससुराल में शौहर के साथ ऐसा करता हुए वह खुद को बेस्वा सी महसूस करती है। वक़्त गु़जरने के साथ साथ शौहर उसे अपनी पसंद की चीज़ें लाकर देता है तो उसे एहसास होता है कि सचमुच वह बेस्वा ही है। एक रोज़ उसका शौहर उसे एक बाज़ारू औरत के बारे में बताता है तो वह कहती है कि घर भी तो एक बाज़ार ही है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि वहाँ शोर ज़्यादा है और यहाँ कम।
राजिंदर सिंह बेदी
मिर्ज़ा ग़ालिब की हशमत ख़ाँ के घर दावत
यह कहानी उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के एक डोमिनी के साथ इश्क़़ की दास्तान को बयान करती है। मिर्ज़ा ग़ालिब के दोस्त हशमत ख़ाँ अपने यहाँ एक दावत रखते हैं। इस दावत में वह मिर्ज़ा ग़ालिब को भी बुलाते हैं। दावत की रंगीनी के लिए मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रेमिका डोमिनी के मुजरे का इंतिज़ाम किया जाता है। मुजरे के दौरान हशमत ख़ाँ कुछ ऐसी हरकतें करते हैं कि डोमिनी मिर्ज़ा ग़ालिब से सरे-आम अपने इश्क़़ का इज़्हार कर देतीं हैं।
सआदत हसन मंटो
पहचान
"तीन दोस्त अपने सौन्दर्य सम्बंधी आनंद की संतुष्टी के लिए कुछ देर के लिए एक नफ़ासत-पसंद लड़की चाहते हैं। एक ताँगे वाला उनको कई जगहों पर ले जाता है, हर जगह से वो बहाना करके निकल लेते हैं। आख़िर में वो उनको एक कमसिन, ग़रीब और भद्दी सी लड़की के पास ले जाता है जहाँ से तीनों दोस्त उठकर भाग खड़े होते हैं। ताँगे वाला अपना किराया वसूल करते वक़्त उनसे कहता है, बाबू जी आपको कुछ पहचान नहीं... ऐसी करारी लौंडिया तो शहर भर में नहीं मिलेगी आपको।"
सआदत हसन मंटो
समय का बंधन
एक बाई की रुहानी ज़िंदगी के गिर्द घूमती कहानी, जो कोठे पर मुजरा किया करती थी। मगर एक रोज़ जब वह ठाकुर के यहाँ बैठक के लिए गई तो उसने वहाँ ख़्वाजा पिया मोरी रंग दे चुनरिया गीत गाया। इस गीत का उस पर ऐसा असर हुआ कि उसने उसकी पूरी ज़िंदगी को ही बदल दिया। वह बेक़रार रहने लगी। उस बेक़रारी से छुटकारा पाने के लिए उसने ठाकुर से शादी कर ली। मगर इसके बाद भी उसे सुकून नहीं मिला और वह ख़ुद की तलाश में निकल गई।
मुमताज़ मुफ़्ती
दूदा पहलवान
एक नौकर की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी इस कहानी का विषय है। सलाहू ने अपने लकड़पन के समय से ही दूदे पहलवान को अपने साथ रख लिया था। बाप की मौत के बाद सलाहू खुल गया था और हीरा मंडी की तवायफ़ों के बीच अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगा था। एक तवायफ़ की बेटी पर वह ऐसा आशिक़ हुआ कि उसका दिवाला ही निकल गया। घर को कुर्क होने से बचाने के लिए उसे बीस हज़ार रूपयों की ज़रूरत थी, जो उसे कहीं से न मिले। आख़िर में दूदे पहलवान ने ही अपना आत्म-सम्मान बेचकर उसके लिए पैसों का इंतेज़ाम किया।
सआदत हसन मंटो
मिसेज़ गुल
एक ऐसी औरत की ज़िंदगी पर आधारित कहानी है जिसे लोगों को तिल-तिल कर के मारने में मज़ा आता है। मिसेज़ गुल एक अधेड़ उम्र की औरत थी। उसकी तीन शादियाँ हो चुकी थीं और अब वह चौथी की तैयारियाँ कर रही थी। उसका होने वाला पति एक नौजवान था। पर वह हर रोज़़ पीला पड़ता जा रहा था। उसके यहाँ की नौकरानी भी थोड़ा-थोड़ा करके घुलती जा रही थी। उन दोनों के मरज़ से जब पर्दा उठा तो पता चला कि मिसेज़ गुल उन्हें एक जानलेवा नशीली दवाई थोड़ा-थोड़ा करके रोज़़ पिला रही थीं।
सआदत हसन मंटो
मिस माला
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जो फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल के लिए लड़कियाँ उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनकी दलाली भी करती है। अज़ीम ने अपने दोस्त भटसावे को एक फ़िल्म में काम दिलवाया तो भटसावे ने उसकी दावत करनी चाही। इसके लिए उसने माला की मदद ली, जिसने उस फ़िल्म के लिए गाने वाली लड़कियों का इंतेज़ाम किया था। फिर भटसावे के कहने पर उसने अज़ीम को एक कमसिन लड़की भी उपलब्ध करा दी थी। जब भटसावे ने माला को अपने साथ सोने के लिए कहा तो उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह तो उसे अपना भाई समझती है।
सआदत हसन मंटो
मोचना
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जिसके चेहरे और जिस्म पर मर्दों की तरह बाल उग आते थे, जिनको उखाड़ने के लिए वह अपने साथ एक मोचना रखा करती थी। हालाँकि देखने में वह कोई ज़्यादा ख़ूबसूरत नहीं थी फिर भी उसमें कोई ऐसी बात थी कि जो भी मर्द उसे देखता उस पर आशिक़ हो जाता। इस तरह उसने बहुत से मर्द बदले। जिस मर्द के पास भी वह गई अपना मोचना साथ लेती गई। अगर कभी वह पुराने मर्द के पास छूट गया तो उसने ख़त लिखकर उसे मंगवा लिया। जब वह एक शायर को छोड़ कर गई तो उसने उसका मोचना देने से इंकार कर दिया ताकी रिश्ते की एक वजह तो बनी रहे।
सआदत हसन मंटो
निकाह-ए-सानी
एक ऐसी औरत की कहानी, जिसे एक ख़त के ज़रिए पता चलता है कि उसका मर्द उसके साथ बेवफ़ाई कर रहा है। ख़त को पढ़ने के बाद उसे वो रातें याद आती हैं जब उसका शौहर किसी न किसी बहाने रात को घर से बाहर चला जाता था। उस रात भी जब उसका शौहर घर नहीं लौटा तो वह बुर्क़ा लगाकर उस तवाएफ़ के घर पहुँच जाती है, जिसका पता उस ख़त में लिखा था।
सज्जाद हैदर यलदरम
दूर का निशाना
यह एक ऐसे मुंशी की दास्तान है, जो अपनी हर ख़्वाहिशात को बड़े शौक़ से पूरा करने का क़ायल है। उसका कामयाब कारोबार है और चौक जो कि बाज़ार-ए-हुस्न है, तक भी उसका आना जाना लगा रहता है। ऐसे में उसकी मुलाक़ात एक वेश्या से हो जाती है। एक रोज़ वह वेश्या के यहाँ बैठा हुआ था कि एक पुलिस वाले ने उसके एक आदमी के साथ मारपीट करली। वेश्या चाहती है कि मुंशी बाहर जाए और उस पुलिस वाले को सबक़ सिखाए। मगर मुंशी जी का ठंडापन देखकर वह उनसे खफ़ा हो जाती है।
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी
गुल-ए-ख़ारिस्तान
यह एक जोशीले नौजवान की कहानी है, जो बदलाव को केवल शब्दों तक सीमित नहीं करता, बल्कि उसे हक़ीक़त भी कर दिखाता है। दीननाथ आर्य समाज समिति का सदस्य होता है और वह सभा-जलसों में समाज में बदलाव के लिए तक़रीरें करता है। एक रोज़़ जब एक लड़की उस से मदद माँगने आती है, तो वह अपनी जान की बाज़ी लगाकर उसकी हिफ़ाज़त करता है।
सुदर्शन
रद्द-ए-अमल
ये एक नसीहत-आमेज़ कहानी है। जलाल एक ला-ओ-बाली और ऐश पसंद तबीयत का मालिक है। उसके चचा मरज़-उल-मौत में उसे नसीहत करते हैं कि बाहर एक अंधा जा रहा है। उसके रास्ते पर उतार-चढ़ाव दोनों हैं, मगर उसे तनिक चिंता नहीं, कि उसके पास लाठी है। चचा की मौत के बाद जलाल उस वाक़्ये के विभिन्न अर्थ निकालता है और फिर वो खू़न ख़राबे से तौबा कर लेता है।
राजिंदर सिंह बेदी
ख़ुदा के बंदे
यह मानवीय मूल्यों और उनके अन्तर्विरोध की कहानी है। मुरली नस्कर को पढ़ने का शौक़ कोलकाता खींच लाया था। मगर उसके पास हॉस्टल के ख़र्चे के लिए पैसे थे न किताब और कापियों के लिए। शायद वो भी दूसरे लड़कों की तरह आवारागर्दी करते हुए एक पतली कापी थामे बी ए पास कर लेता और कहीं क्लर्क या टीचर का पद सँभाल कर एक बकवास और एक कायर की सी ज़िंदगी गुज़ारता। मगर सोना गाछी के दलाल गिरजा शंकर ने उसे सहारा दिया और इस घिसी-पिटी ज़िंदगी से नजात दिलाई। गिरिजा शंकर से उसकी मुलाक़ात लोकल ट्रेन में थी जहाँ से वो उसे अपने साथ सोना गाछी ले आया और मेहंदी लक्ष्मी के कमरे में उसका ठिकाना तै कर दिया।