जब्र पर चित्र/छाया शायरी
जब्र अर्थात वो सब कुछ
जो मर्ज़ी के ख़िलाफ़ थोप दिया जाता है । इसलिए इस को इंसान के इख़्तियार अर्थात उस के अधिकार से विरोधाभास के तौर पर जब्र का नाम दिया गया है । इंसान जितना ख़ुद-मुख़्तार है उतना ही मजबूर भी है । विद्वानों के अनुसार इख़्तियार जब्र की वजह से है दर-अस्ल जो कुछ हम सोचते हैं और करते हैं वो एक तरह के जब्र की वजह से ही है । यहाँ प्रस्तुत संकलन में जब्र के व्यापक रूक को समाजी, सियासी, तारीख़ी, मज़हबी और तहज़ीबी सूरतों देखा जा सकत है ।
![ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने](https://rekhta.pc.cdn.bitgravity.com/Images/ShayariImages/ye-jabr-bhii-dekhaa-hai-taariikh-kii-nazron-ne-couplets-muzaffar-razmi_medium.png)
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