aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़की काकोरवी

ग़ज़ल 7

अशआर 25

अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ

अहल-ए-दुनिया को रिवायात पे रोना आया

याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या

हाथ उठाए हैं जब दुआ के लिए

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तू ही बता दे कैसे काटूँ

रात और ऐसी काली रात

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हुस्न जिस हाल में नज़र आया

हम ने उस हाल में परस्तिश की

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साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं

ये निगाहों का क़ौल-ए-मुबहम क्या

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