विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल 4
अशआर 4
इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा
वो हमारे साथ अपने ग़म ग़लत करता रहा
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मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में
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रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
इक दिन मय को भूल के आओ गंगा-जल की बात करें
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लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
आप भी एहसान थोड़ा कीजिए
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