विक्रम गौर वैरागी
ग़ज़ल 1
अशआर 2
सिर्फ़ शिकवे दिख रहे हैं ये नहीं दिखता तुझे
तुझ से शिकवे रखने वाला तेरा दीवाना भी है
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मैं अभी हँसता उठूँ और चहकने लग जाऊँ
पर ये मुश्किल है मिरा यार नहीं मान रहा
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