विकास शर्मा राज़
ग़ज़ल 12
अशआर 41
मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
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एक बरस और बीत गया
कब तक ख़ाक उड़ानी है
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मुद्दतें हो गईं हिसाब किए
क्या पता कितने रह गए हैं हम
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इरादा तो नहीं है ख़ुद-कुशी का
मगर मैं ज़िंदगी से ख़ुश नहीं हूँ
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मेरी कोशिश तो यही है कि ये मा'सूम रहे
और दिल है कि समझदार हुआ जाता है
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चित्र शायरी 3
वीडियो 8
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