उमैर क़ुरैशी
अशआर 1
बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं थे
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere