तुराब काकोरवी
अशआर 3
शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी
कोई पत्थर से न मारे मिरे दीवाने को
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शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी
कोई पत्थर से न मारे मिरे दीवाने को
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हदफ़ जिस का फ़क़त दिल हो मैं ऐसे तीर के क़ुर्बां
बदन जिस से न घाएल हो मैं उस शमशीर के क़ुर्बां
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हदफ़ जिस का फ़क़त दिल हो मैं ऐसे तीर के क़ुर्बां
बदन जिस से न घाएल हो मैं उस शमशीर के क़ुर्बां
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उड़ के आया है लगन में तिरे जल जाने को
शौक़ से फूँक दे ऐ शम्अ तू परवाने को
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