तालिब जयपुरी
ग़ज़ल 10
अशआर 3
बे-ख़ुदी में हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए
अब ख़ुदा मालूम काबा था कि वो बुत-ख़ाना था
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न आँखों में आँसू न लब पर तबस्सुम
मोहब्बत में ऐसे भी लम्हात आए
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उन की तरफ़ भी देखो ज़रा ऐ गदा-नवाज़
दामन ही तेरे सामने फैला के रह गए
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