सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल 18
नज़्म 2
अशआर 7
जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
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दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
ये उजड़ने के बा'द बस्ती है
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देर से आ रही है याद तिरी
क्या तुझे याद आ रहा हूँ मैं
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तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
ख़याल-ए-अज़्मत-ए-माज़ी को छोड़ हाल को देख
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बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
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