शमीम रविश
ग़ज़ल 10
अशआर 2
मुझे हर शाम इक सुनसान जंगल खींच लेता है
और इस के बाद फिर ख़ूनी बलाएँ रक़्स करती हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere