शाहिदा मजीद
ग़ज़ल 14
अशआर 2
किसी ने फिर से लगाई सदा उदासी की
पलट के आने लगी है फ़ज़ा उदासी की
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ज़मीन-ए-दिल पे मोहब्बत की आब-यारी को
बहुत ही टूट के बरसी घटा उदासी की
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