शबनम शकील
ग़ज़ल 53
नज़्म 3
अशआर 2
चलते रहे तो कौन सा अपना कमाल था
ये वो सफ़र था जिस में ठहरना मुहाल था
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चलते रहे तो कौन सा अपना कमाल था
ये वो सफ़र था जिस में ठहरना मुहाल था
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अब मुझ को रुख़्सत होना है अब मेरा हार-सिंघार करो
क्यूँ देर लगाती हो सखियो जल्दी से मुझे तय्यार करो
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अब मुझ को रुख़्सत होना है अब मेरा हार-सिंघार करो
क्यूँ देर लगाती हो सखियो जल्दी से मुझे तय्यार करो
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