सलीम बेताब
ग़ज़ल 30
नज़्म 1
अशआर 5
मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ
देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
वो कौन है जो मिरे साथ साथ चलता है
ये देखने को कई बार रुक गया हूँ मैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सरमा की रात रेल का डिब्बा उदासियाँ
लम्बा सफ़र है और तिरा साथ भी नहीं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
'बेताब' लड़कियों की जसारत तो देखिए
ख़ुद को शुमार करती हैं सब अप्सराओं में
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
उस मुल्क में भी लोग क़यामत के हैं मुंकिर
जिस मुल्क के हर शहर में इक हश्र बपा है
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए