साहिल अहमद
ग़ज़ल 9
नज़्म 7
अशआर 10
अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
फिर दोबारा लौट कर आए नहीं
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आज कुआँ भी चीख़ उठा है
किसी ने पत्थर मारा होगा
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कल तलक सहरा बसा था आँख में
अब मगर किस ने समुंदर रख दिया
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मकड़ियों ने जब कहीं जाला तना
मक्खियों ने शोर बरपा कर दिया
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रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
जब किसी ने हाथ सर पर रख दिया
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