साहिल अहमद के शेर
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार
ऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत
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टैग : अंगड़ाई
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किस तसव्वुर के तहत रब्त की मंज़िल में रहा
किस वसीले के तअस्सुर का निगहबान था मैं
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उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था
क्यूँ फिर इस तर्क-ए-तअल्लुक़ से पशेमान था मैं
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आज कुआँ भी चीख़ उठा है
किसी ने पत्थर मारा होगा
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रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
जब किसी ने हाथ सर पर रख दिया
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कल तलक सहरा बसा था आँख में
अब मगर किस ने समुंदर रख दिया
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अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
फिर दोबारा लौट कर आए नहीं
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मकड़ियों ने जब कहीं जाला तना
मक्खियों ने शोर बरपा कर दिया
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