सहर अंसारी
ग़ज़ल 28
नज़्म 11
अशआर 16
अजीब होते हैं आदाब-ए-रुख़स्त-ए-महफ़िल
कि वो भी उठ के गया जिस का घर न था कोई
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अजीब होते हैं आदाब-ए-रुख़स्त-ए-महफ़िल
कि वो भी उठ के गया जिस का घर न था कोई
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ये मरना जीना भी शायद मजबूरी की दो लहरें हैं
कुछ सोच के मरना चाहा था कुछ सोच के जीना चाहा है
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ये मरना जीना भी शायद मजबूरी की दो लहरें हैं
कुछ सोच के मरना चाहा था कुछ सोच के जीना चाहा है
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शायद कि वो वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-सफ़र से
पानी में जो क़दमों के निशाँ ढूँड रहा था
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सहर अंसारी
सहर अंसारी
वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

Professor Sahar Ansari is an Urdu poet, critic and scholar fo Urudu literature and linguistic from Pakistan. Prof. Sahar Ansari has been awarded Tamgha-e-Imtiyaz by the government of Pakistan. Sahar Ansari reciting his ghazal for Rekhta.org. सहर अंसारी
