रियाज़ मजीद
ग़ज़ल 22
नज़्म 1
अशआर 5
वक़्त ख़ुश ख़ुश काटने का मशवरा देते हुए
रो पड़ा वो आप मुझ को हौसला देते हुए
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
इक घर बना के कितने झमेलों में फँस गए
कितना सुकून बे-सर-ओ-सामानियों में था
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द
वो अपने और मिरे दरमियान छोड़ गया
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
इसी हुजूम में लड़-भिड़ के ज़िंदगी कर लो
रहा न जाएगा दुनिया से दूर जा कर भी
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
बाद-ए-शाम आए महक उट्ठे मिरा सह्न रियाज़
बे-महक झाड़ियों से रात की रानी निकले
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए