रेनू नय्यर
ग़ज़ल 9
अशआर 9
अब ज़बाँ तक आ गईं है तल्ख़ियाँ
अब हमें फ़ौरन निकलना चाहिए
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किसी भी हश्र से महरूम ही रहा वो भी
मिरी तरह का जो किरदार था कहानी में
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अभी मंज़र बदलते ही बदल जाएँगे सब चेहरे
बिछड़ते वक़्त का ग़म है अभी तू नम न कर आँखें
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तिरी नज़रों से गुज़री रहगुज़र भी
हज़ारों मंज़िलों का रास्ता है
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दिल की बाज़ी ऐसी बाज़ी है जिस में हम
हारें भी तो जीत मनाई जा सकती है
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