रईस सिद्दीक़ी के शेर
तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते
ज़रा सी बात पे जीना हराम क्या करते
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न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा
ये हाल था तो कोई नेक काम क्या करते
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बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है
मिरे ख़िलाफ़ मिरा आईना अभी तक है
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