रहमान ख़ावर
ग़ज़ल 42
अशआर 1
कोई ख़ुद से मुझे कमतर समझ ले
ये मतलब भी नहीं है आजिज़ी का
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere