रईस रामपुरी
अशआर 5
चौदहवीं का चाँद फूलों की महक ठंडी हवा
रात उस काफ़िर अदा की ऐसी याद आई कि बस
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आज वहशत से मिरी घबरा गए वो भी 'रईस'
आज तो ख़ुद पर मुझे इतनी हँसी आई कि बस
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अब भी कोह-ए-तूर पर गोया ज़बान-ए-हाल से
है कोई और उस के जल्वे का तमन्नाई कि बस
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