क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल 35
अशआर 7
तंग-दस्ती अगर न हो 'सालिक'
तंदुरुस्ती हज़ार नेमत है
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बच गया तीर-ए-निगाह-ए-यार से
वाक़ई आईना है फ़ौलाद का
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अब तक भी मेरे होश ठिकाने नहीं हुए
'सालिक' का हाल रात को ऐसा सुना कि बस
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सय्याद और क़ैद-ए-क़फ़स से करे रहा
झूटी ख़बर किसी की उड़ाई हुई सी है
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क्या सैर हो बता दे कोई बुत-कदे की राह
जाता हूँ राह का'बे की मैं पूछता हुआ
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