क़मर सिद्दीक़ी के शेर
ये इंतिज़ार की घड़ियाँ ये शब का सन्नाटा
इस एक शब में भरे हैं हज़ार साल के दिन
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere