प्रणव मिश्र तेजस
ग़ज़ल 14
नज़्म 4
अशआर 6
अपनी तलब में शौक़ से जगते हैं रात-भर
हम को किसी के इश्क़ का मारा न जानिए
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मुझ से ख़ला में बात भी करना नहीं रफ़ीक़
ऐसे ख़ला में बात भी करना है इक गुनाह
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सिगरेट से जा के दूर गिरा ख़ाक हो गया
आया शरर की शक्ल में सोज़-ए-निहाँ का दर्द
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जाते नहीं हैं और कहीं फाँकने को धूल
सहरा हमारे घर का है मेहमान इन दिनों
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सज्दा हुआ हमेशा फ़क़ीरों के इल्म पर
हम आगही पे मरते हैं पोशाक पर नहीं
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