परवेज़ साहिर
ग़ज़ल 9
अशआर 6
वक़्त अच्छा ज़रूर आता है
पर कभी वक़्त पर नहीं आता
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इतना बे-आसरा नहीं हूँ मैं
आदमी हूँ ख़ुदा नहीं हूँ मैं
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मेरी फ़ितरत ही में शामिल है मोहब्बत करना
और फ़ितरत कभी तब्दील नहीं हो सकती
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'साहिर' ये मेरा दीदा-ए-गिर्यां है और मैं
सहरा में कोई दूसरा झरना तो है नहीं
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पूछा था मैं ने जब उसे क्या मुझ से इश्क़ है?
उस को मिरे सवाल पे हैरत नहीं हुई
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