ओबैद आज़म आज़मी
अशआर 4
जो लोग गुज़रते हैं मुसलसल रह-ए-दिल से
दिन ईद का उन को हो मुबारक तह-ए-दिल से
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राहों में जान घर में चराग़ों से शान है
दीपावली से आज ज़मीन आसमान है
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देखता हूँ तू नहीं रहम के क़ाबिल कोई
सोचता हूँ तो हज़ारों तरस आता है
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नज़ाकत है बहुत इस में मगर ये जानता हूँ मैं
मोहब्बत जिस को हो जाती है उर्दू सीख जाता है
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