नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल 27
नज़्म 2
अशआर 2
ता-क़यामत ज़िक्र से रौशन रहेगी ये ज़मीं
ज़ुल्मतों की शाम में इक रौशनी है कर्बला
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क्यूँ सकीना और ज़ैनब इस क़दर ख़ामोश हैं
दूर तक सहरा में देखो ख़ामुशी है कर्बला
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