नुसरत मेहदी
ग़ज़ल 28
नज़्म 2
अशआर 4
आजिज़ी आज है मुमकिन है न हो कल मुझ में
इस तरह ऐब निकालो न मुसलसल मुझ में
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फ़ज़ा ये अम्न-ओ-अमाँ की सदा रखें क़ाएम
सुनो ये फ़र्ज़ तुम्हारा भी है हमारा भी
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आज इस अंदाज़ से तुम ने मुझे आवाज़ दी
यक-ब-यक मुझ में ख़याल आया कि हाँ मैं भी तो हूँ
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आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ
इस ज़मीं और आसमाँ के दरमियाँ मैं भी तो हूँ
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