निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल 53
अशआर 61
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
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अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
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है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दम
मैं ये क्यूँ पूछूँ कब मिलेंगे आप
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तेरे ही ग़म में मर गए सद-शुक्र
आख़िर इक दिन तो हम को मरना था
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अब तुम से क्या किसी से शिकायत नहीं मुझे
तुम क्या बदल गए कि ज़माना बदल गया
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