नाज़िर वहीद
ग़ज़ल 7
अशआर 9
रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें
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- ग़ज़ल देखिए
मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगा
गाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर
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पढ़ने वाला भी तो करता है किसी से मंसूब
सभी किरदार कहानी के नहीं होते हैं
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देखने वाले तुझे देखते होंगे लेकिन
देखने वालों को हैरत भी तो होती होगी
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इक नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है
इश्क़ फिर हम को दोबारा भी तो हो सकता है
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