मोहसिन काकोरवी
अशआर 4
दामन से वो पोंछता है आँसू
रोने का कुछ आज ही मज़ा है
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देखिए होगा श्री-कृष्ण का दर्शन क्यूँ-कर
सीना-ए-तंग में दिल गोपियों का है बेकल
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सुना है मोहतसिब भी ताक में है दुख़्तर-ए-रज़ की
इलाही रख ले तू हुर्मत शराब-ए-अर्ग़वानी की
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राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
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