मोहम्मद मुख़तार अली
ग़ज़ल 2
अशआर 2
मियाँ ये चादर-ए-शोहरत तुम अपने पास रखो
कि इस से पाँव जो ढाँपें तो सर निकलता है
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मियाँ ये चादर-ए-शोहरत तुम अपने पास रखो
कि इस से पाँव जो ढाँपें तो सर निकलता है
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दिलों से दर्द दुआ से असर निकलता है
ये किस बहिश्त की जानिब बशर निकलता है
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दिलों से दर्द दुआ से असर निकलता है
ये किस बहिश्त की जानिब बशर निकलता है
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