मोहम्मद असदुल्लाह
ग़ज़ल 22
नज़्म 22
अशआर 4
इक दनदनाती रेल सी उम्रें गुज़र गईं
दो पटरियों के बीच वही फ़ासले रहे
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से
चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
ऐ जाते बरस तुझ को सौंपा ख़ुदा को
मुबारक मुबारक नया साल सब को
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
आब-दीदा हूँ मैं ख़ुद ज़ख़्म-ए-जिगर से अपने
तेरी आँखों में छुपा दर्द कहाँ से देखूँ
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए