मिर्ज़ा रफ़ीक़ शाकिर
ग़ज़ल 4
अशआर 1
आफ़त-ओ-क़हर फ़ित्ने मुसीबत अलम दर्द तकलीफ़ कर्ब-ओ-बला रंज-ओ-ग़म
इक तवज्जोह हटाई जो उस ने ज़रा देख लो ख़ुद पे कैसी घड़ी आ गई
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere