मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल 13
अशआर 9
मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
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हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
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प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाए
अपने हिस्से में समुंदर नहीं आने वाला
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जो कह रहे थे कि जीना मुहाल है तुम बिन
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे
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आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते
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वीडियो 17
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