मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल 32
अशआर 10
क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
काबा का और ख़ाना-ए-दिल का ये हाल है
जैसे कोई मकाँ हो मकाँ के जवाब में
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
नज़र किसी को वो मू-ए-कमर नहीं आता
ब-रंग-ए-तार-ए-नज़र है नज़र नहीं आता
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
सेह्हत है मरज़ क़ज़ा शिफ़ा है
अल्लाह हकीम है हमारा
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
हसरत-ए-दीद में आख़िर को दम अपना उल्टा
पर्दा-ए-चश्म न उस शोख़ ने अपना उल्टा
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए