मीना नक़वी
ग़ज़ल 24
नज़्म 1
अशआर 2
मैं मुल्क-बदर सब्र भी कर सकती थी लेकिन
ये देखना था ज़ुल्म की सरहद है कहाँ तक
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere