मर्दान अली खां राना
ग़ज़ल 12
अशआर 48
राह-ए-उल्फ़त में मुलाक़ात हुई किस किस से
दश्त में क़ैस मिला कोह में फ़रहाद मुझे
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न पूछो हम-सफ़रो मुझ से माजरा-ए-वतन
वतन है मुझ पे फ़िदा और मैं फ़िदा-ए-वतन
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प्यार की बातें कीजिए साहब
लुत्फ़ सोहबत का गुफ़्तुगू से है
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तेरे आते ही देख राहत-ए-जाँ
चैन है सब्र है क़रार है आज
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उठाया उस ने बीड़ा क़त्ल का कुछ दिल में ठाना है
चबाना पान का भी ख़ूँ बहाने का बहाना है
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