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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मक़बूल आमिर

1955 - 1990

मक़बूल आमिर

ग़ज़ल 4

 

अशआर 4

मेरी तारीफ़ करे या मुझे बद-नाम करे

जिस ने जो बात भी करनी है सर-ए-आम करे

मुझे ख़ुद अपनी नहीं उस की फ़िक्र लाहक़ है

बिछड़ने वाला भी मुझ सा ही बे-सहारा था

सफ़र पे निकलें मगर सम्त की ख़बर तो मिले

कोई किरन कोई जुगनू दिखाई दे तो चलें

मैं ऐसी राह पे निकला कि मेरी ख़ुश-बख़्ती

तमाम उम्र मिरी खोज में भटकती रही

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 3

बला की धूप थी सारी फ़ज़ा दहकती रही

मेरी तारीफ़ करे या मुझे बद-नाम करे

यही चिनार यही झील का किनारा था

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