मन्नू लाल सफ़ा लखनवी
अशआर 1
चर्ख़ को कब ये सलीक़ा है सितमगारी में
कोई माशूक़ है इस पर्दा-ए-ज़ंगारी में
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere