ख़लिश अकबराबादी
अशआर 2
ज़िंदगी तुझ से भी क्या ख़ूब तअल्लुक़ है मिरा
जैसे सूखे हुए पत्ते से हवा का रिश्ता
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बर्क़ ने मेरा नशेमन न जलाया हो कहीं
सहन-ए-गुलशन में उजाला है ख़ुदा ख़ैर करे
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