खलील तनवीर
ग़ज़ल 14
नज़्म 19
अशआर 32
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
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रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
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वो लोग अपने आप में कितने अज़ीम थे
जो अपने दुश्मनों से भी नफ़रत न कर सके
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परिंद शाख़ पे तन्हा उदास बैठा है
उड़ान भूल गया मुद्दतों की बंदिश में
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तेरी आमद की मुंतज़िर आँखें
बुझ गईं ख़ाक हो गए रस्ते
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