कैलाश माहिर
ग़ज़ल 24
नज़्म 12
अशआर 3
तुम भी इस शहर में बन जाओगे पत्थर जैसे
हँसने वाला यहाँ कोई है न रोने वाला
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जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं
क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं
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रिश्ता-ए-दर्द की मीरास मिली है हम को
हम तिरे नाम पे जीने की ख़ता करते हैं
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