कैफ़ी हैदराबादी
ग़ज़ल 6
नज़्म 2
अशआर 12
सुब्ह को खुल जाएगा दोनों में क्या याराना है
शम्अ परवाना की है या शम्अ का परवाना है
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वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
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हम आप को देखते थे पहले
अब आप की राह देखते हैं
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मोहब्बत में क्या क्या न कुछ जौर होगा
अभी क्या हुआ है अभी और होगा
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वही नज़र में है लेकिन नज़र नहीं आता
समझ रहा हूँ समझ में मगर नहीं आता
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