जाज़िब क़ुरैशी
ग़ज़ल 21
अशआर 14
क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ
तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
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तेरी यादों की चमकती हुई मशअ'ल के सिवा
मेरी आँखों में कोई और उजाला ही नहीं
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मिरे वजूद के ख़ुश्बू-निगार सहरा में
वो मिल गए हैं तो मिल कर बिछड़ भी सकते हैं
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दफ़्तर की थकन ओढ़ के तुम जिस से मिले हो
उस शख़्स के ताज़ा लब-ओ-रुख़्सार तो देखो
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तेरी ख़ुश्बू प्यार के लहजे में बोले तो सही
दिल की हर धड़कन को इक चेहरा नया मिल जाएगा
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